अम्बेडकरनगर। जिले के डोंडो निवासी भाजपा समर्थक मंच के संस्कृत एवं साहित्य प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुमैल अहमद सिद्दीकी ।साहित्य की दुनिया से जुड़े हुए इनके द्वारा लिखी गयी नात मनकबत गीत जो पूरे मुल्क में पढ़ी जाती है। 

मुद्दतों बाद मेरे लब पे सुख़न आया है
पांव धोए हैं बुजुर्गों के तो फ़न आया है

कितने शिद्दत से जिऐं कितने उठाए हैं सितम
तब कहीं जाके किसी तन पे कफ़न आया है

इम्तिहां देने को धरती पे उतरा रब ने
अपनी मर्जी से कहां मेरा बदन आया है.

आखिरी वक्त है पुरशिश में सभी आए हैं 
ख़त्म है आरज़ू जीने की तो धन आया है

जीते जी कद्र नहीं जिसने की तेरी अहमद
चेहरा गमगीन लिए रखने भरम आया है

 मुस्तफा के इश्क में सरशार होना चाहिए
इश्क है आका से तो  इज़हार होना चाहिए

आपके क़ूज़े में भी दरिया सिमट कर आएगा
शर्त यह है ख्वाजा सा किरदार होना चाहिए

डूबते सूरज को पलटाया नबी का मऔजेज़ा
अश्के हैदर शाह का रुखसार होना चाहिए

इश्क में डूबी हुई नअते सुनाने के लिए
तुझको अहमद मुस्तफा से प्यार होना चाहिए

 मेरे वतन की तू है बड़ी शान तिरंगा
तू हिंद की अज़मत का निगेहबान तिरंगा

तुझको सलामी देने को दिल बेकरार है
तेरे ही दम से अपने चमन में बहार है
हम देशवासियों का है अभिमान तिरंगा

मेरे वतन की तू है बड़ी शान तिरंगा
तू हिन्दू की अज़मत का निगेहबान तिरंगा 

तू शान से लहराये  यही अज़्म  हमारा
पड़ने नहीं देंगे किसी दुश्मन का भी साया
हर मज़हबो मिल्लत का है सम्मान तिरंगा

मेरे वतन की तू है बड़ी शान तिरंगा
तू हिंद की अज़मत का निगहबान तिरंगा

तुझको कुमेल जैसे हज़ारों का हो सलाम
तुझको करोड़ों देश के वासी का है पयाम
लहराये सदा अम्न की पहचान तिरंगा

मेरे वतन की तू है बड़ी शान तिरंगा
तू हिंद की अज़मत का निगेहबान तिरंगा

 अपनी माटी का गुनहगार नहीं हो सकता
तल्ख़ हो सकता हूं गद्दार नहीं हो सकता

मुल्क के वास्ते एक जान क्या सौ जान फिदा
ऐ वतन तुझसा मददगार नहीं हो सकता

आईये मिल के शमां प्यार की रोशन कर दें
जिसमें झगड़े हो वह त्यौहार नहीं हो सकता

अपनी धरती के लिए जान हथेली पर रख
कोई दुश्मन कभी इस पार नहीं हो सकता

मुल्क से अपने मोहब्बत करो फरमाने नबी
ऐसे आदेश का इनकार नहीं हो सकता

कुमैल अहमद ने किया बारहा सौहार्द की बात
आपका भाई हूं।   बदकार नहीं हो सकता

 वह जो कुल कायनात वाला है
उसका महबूब भी निराला है

वह तो रहमत है सारे आलम की
उन के सदके में हर निवाला है

रोज महशर गुनहगारों को
जो छुपाए वह कमली वाला है

उनकी तारीफ लिखते रहिए कुमैल
सारे जग में जो सबसे आला है

 आपसी सौहार्द के सांचे में ढलना चाहिए
डॉक्टर अंबेडकर के पथ पे चलना चाहिए

एक दर्जन से अधिक भाषाओं के विद्वान थे
बत्तीस डिग्री लेने वाले देश की वह शान थे
आदमी की शक्ल में मज़लूमों के भगवान थे
डॉक्टर अंबेडकर भारत की मानों जान थे

सोच से उनकी मेरा भारत संवरना चाहिए

डॉक्टर अंबेडकर के पथ पे चलना चाहिए


भारत के हर एक निवासी पर बडा एहसान है
उनके दम से वंचितों मज़लूमो का सम्मान है
उनके द्वारा ही लिखा भारत का संविधान है
थे वह ऐसी शख्सियत उन पर बड़ा अभिमान है


हम सभी को उनके ही सांचे में ढलना चाहिए
डॉक्टर अंबेडकर के पथ पे चलना चाहिए

दे दिया आईन जिसने देश को सौगात में
और मज़लूमों का थामा हाथ जिसने हाथ में
ऐसे जननायक की रचनाएं लिखो जज्बात में
 बहु जनों के संग अहमद तुझको चलना चाहिए

आपसी सौहार्द के सांचे में ढलना चाहिए
डॉक्टर अंबेडकर के पथ पे चलना चाहिए

 मानिंद आफताब के चलना भी पड़ेगा
वैसे ही चमकना है तो जलना भी पड़ेगा

कांटो भरी है राह मनाजिल से पेश तर
पुरख़ार वादियों से गुजरना भी पड़ेगा

यूं देश वासियों से गुजारिश है बस कुमेल
अपने वतन के वास्ते लड़ना भी पड़ेगा
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