अम्बेडकरनगर। जामिया बीबी सुल्ता खातून लीलबनात बसखारी में जश्न ए विलादत फातेह खैबर व नातिया मुशायरा मौलाना शाह सैयद अनीस अशरफ अशरफीउल जिलानी की अध्यक्षता तथा आमिर रजा मऊ के संचालन में कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ हाफिज अब्दुल हसन की तिलावते कुरान पाक से हुआ। इस अवसर पर मौलाना अज़हर उल कादरी चतुर्वेदी बिहार ने बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कहा कि आज के दौर मे हज़रत अली की जीवन दर्शन प्रसांगिक है। उन्होंने अमन और शान्ति का पैगाम दिया और बता दिया कि इस्लाम कत्ल और गारतगिरी और आतंकवाद के पक्ष में नही है। जानबूझ कर किसी का कत्ल करने पर इस्लाम मे अज़ाब मुर्कर है ।उन्होंने कहा कि इस्लाम तमाम मुसलमानों का मज़हब है ।अल्फाज़ और नारों से हट कर  इंसाफ की सच्ची तस्वीर पेश की । सैयद अजीज अशरफ बसखारी ने कहा कि हजरत अली ने राष्ट्रप्रेम और समाज मे बराबरी की पैरोकारी की ।वह कहा करते थे कि अपने शत्रु से भी प्रेम किया करो तो वह एक दिन तुम्हारा दोस्त बन जायेगा। उनका कहना है कि अत्याचार करने वाला ,उसमे सहायता करने वाला और अत्याचार से खुश होने वाला भी अत्याचारी ही है। मौलाना नबील अख्तर लखनवी ने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम मोहम्मद मुस्तफा स. ने कहा है कि मैं इल्म का शहर तो अली उसके दरवाज़े हैं ।अली वह ज़ात है जिसकी विलादत भी मोजिज़ा और जिसकी शहादत भी मोजिज़ा है । मौलाना मोहम्मद सिद्दीक शारिक बसखारी ने कहा कि हजरत अली बड़ी खूबियों के मालिक थे ।तभी तो पैदा भी अल्लाह के घर मे हुये और शहीद भी अल्लाह के घर मे हुए ।अगर आज अली के बताये रास्ते पर कुछ दूरी तक भी चला जाये तो दुनियां और समाज मे फैली अशान्ति ख़त्म हो सकती है । सैयद खलीक अशरफ ने कहा कि हज़रत अली बहुत ही उदार भाव रखने वाले व्यक्ति थे। अपने कार्यों, साहस, विश्वास और दृढ संकल्प होने के कारण मुस्लिम संस्कृति में हजरत अली को बहुत ही सम्मान के साथ जाना जाता है। सैयद अनीस अशरफ अशरफीउल जिलानी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि हजरत अली में इस्लाम के प्रति  बहुत ही ज्यादा प्रेम था। और इस्लाम के विषय में उनको बहुत ज्ञान भी था। मुहम्मद साहब के साथ रहकर अली ने कई इस्लामिक जंगे लड़ीं। उनकी बहादुरी के बारे में बताया जाता है कि अली ने खैबर की जंग में मरहब (जो यहूदी सेना का प्रमुख था) नाम के पहलवान को पछाड़ा था।मरहब ऐसा था कि उसकी ताकत किसी क़ो भी कंपा देती थी! लेकिन अली ने उसे ही पटकी नहीं दी, बल्कि उसके साथी ‘अंतर’ को भी पटक दिया। इस जंग में अली ने खैबर के क़िले के दरवाज़े को उखाड़ कर ढाल की तरह इस्तेमाल किया था। इस दरवाज़े के बारे में बताया जाता है कि इसे करीब 20 लोग मिलकर बंद करते थे. अली ने खैबर की जंग को जीत लिया। इस मौके पर नातख़्वां एवं शायरों ने अपने कलाम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। हिलाल टांडवी ने शेर पढ़ा कि तसव्वुर आज़माने में जरा सी देर लगती है, नबी के शहर जाने में ज़रा सी देर लगती है।रजी अहमद कादरी ने कहा कि हो जाती है अब हर मकबूल दुआ मेरी, मैं जब से हुआ तेरा सुनता है खुदा मेरी। महताब दानिश इलाहाबादी ने कहा कि यह बात हकीकत है तुमने मस्जिद में शहादत पाई है, और पैदा हुए अल्लाह के घर या शेरे खुदा मौला अली। मुमताज टांडवी ने कहा किअल्लाह क़सम नज़रों में मेरी जब गुंबदे ख़िज़रा होता है, जन्नत की भी जन्नत होती है क़ाबा का क़ाबा होता है। शादाब साक़ी चिरैयाकोट मऊ ने कहा कि मेरे नबी ने लक़ब जिनको दे दिया साक़ी, वही तो शेर खुदा बूतराब हैदर हैं।साजिद रज़ा शमसी सुल्तानपुरी ने कहा कि हुस्न यूसुफ का है यूं तो एहसन मगर, हुस्न की इंतिहा आपका हुस्न है। शोएब वारसी ने कहा कि हाल-ए-दिल किसको सुनाए आप के होते हुए, क्यों किसी के दर पे जाएं आपके होते हुए। इसके अलावा सगीर सबा मुरादाबादी, ज़ैन अशरफी औरंगाबादी,नईम अहमद वारसी इलाहाबादी, अकील धनबादी, एहसान शाकिर जैनपुरी आदि नातख़्वां ने अपने कलाम पेश किए। इस अवसर पर सैयद मसूद उल हसन, सैयद जावेद अशरफ, सैयद आसिफ अशरफ, अब्दुर्रहीम, सैयद आले मुस्तफा, मोहम्मद अशरफ, सैयद खलीक अशरफ, जंग बहादुर खान, आसिफ सिद्दीकी, कुमेल सिद्दीकी, मौलाना रियाज अहमद कारी मोहम्मद अख्तर आदि लोग मौजूद थे।
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